सुबह मंदिर का मान, शाम को अजान का ध्यान। गौ सेवा और संस्कृति का विद्वान, ऐसा अनूठा रमजान खान। मिली पद्मश्री तो गौ सेवा को श्रेय और अल्लाह का अहसान। गंगा-जमुनी संस्कृति की जीती-जागती मिसाल हैं रमजान खान ऊर्फ मुन्ना मास्टर। भजन गायकी से अपने परिवार पालने वाले मुन्ना मास्टर ने अपने बच्चों को संस्कृत पढ़वायी। फलस्वरूप आज एक बेटा देश की प्रतिष्ठित संस्था बीएचयू के संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति पा चुका है। मुन्ना मास्टर के लिये पद्मश्री मिलना अप्रत्याशित है, जिसे वे गौ सेवा का सुफल मानते हैं।
भजन गायिकी मुन्ना मास्टर को विरासत में मिली। संगीत और संस्कृत के संस्कार पिता गफूर खान से मिले। वे संगीत विशारद थे। वे पिता के साथ मंदिरों में जाते और भजन गायिकी का रियाज करते। धीरे-धीरे क्षेत्र में होने वाले धार्मिक आयोजनों में भजनों की प्रस्तुति देने लगे। उनकी प्रसिद्धि कालांतर चारों ओर फैलने लगी। फिर धीरे-धीरे उनका संस्कृत प्रेम परवान चढ़ा। उन्होंने शास्त्री की उपाधि पाकर संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की।
मुन्ना मास्टर का प्रारंभिक जीवन बेहद कठिनाइयों से भरा रहा। जब वे महज सात साल के थे तो सिर से पिता का साया उठ गया। अपनी जीविका के उपार्जन के लिये मंदिरों में भजन गाने लगे। उनके रुझान का बिरादरी वालों ने विरोध किया, उन पर हमला भी हुआ लेकिन वे अपने जुनून से पीछे नहीं हटे। उन्होंने खुद तो संस्कृत पढ़ी ही, साथ ही सभी बच्चों को संस्कृत की शिक्षा दिलायी।
जब मुन्ना मास्टर को पद्मश्री मिलने की खबर आई तो उनके गांव बगरू में खुशी की लहर दौड़ गई। यह खबर सबसे पहले उनके बेटे फिरोज ने दी। फिर दो कमरों वाले मकान में बधाई देने वालों का तांता लग गया। वे इसे अल्लाह का करम और अहसान बताते हैं। जब उन्हें यह खबर मिली तो वे गौ सेवा में लगे भजन गा रहे थे। वे बताते हैं कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा सम्मान मिलेगा। वे इसका श्रेय गौ सेवा को देते हैं। वे कहते हैं, ‘मैं चंपालाल जी का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मुझे गौ सेवा का रास्ता बताया और कहा था कि सेवा कर सब कुछ मिलेगा। जो सही मायनो में राष्ट्र सेवा है।’
जयपुर के इलाके में रमजान खान की पहचान भजन गायक, श्रीकृष्ण भक्त और गौ सेवक की है। भजन गायिकी के जरिये उन्होंने रसखान की समृद्ध परंपरा को विस्तार ही दिया है। वे श्याम सुरभि वंदना नामक किताब भी लिख चुके हैं। रमजान के चार बेटे हैं और उन्होंने बगरू के राजकीय संस्कृत विद्यालय से संस्कृत में शिक्षा हासिल की है। उनके इस निर्णय का रिश्तेदारों ने भारी विरोध किया था। उनका दबाव संस्कृत के बजाय मदरसों में उर्दू पढ़ाने के लिये था। उन लोगों ने वर्षों तक रमजान का बायकाट करके रखा। लेकिन जब बेटा फिरोज खान बीएचयू में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर बन गया तो सभी रमजान खान के कायल हो गये। रमजान खान की दो बेटियां भी हैं—लक्ष्मी और अनिता।
पिछले पंद्रह साल से गौ सेवा कर रहे रमजान ने भजन गाकर परिवार पाला, मगर आर्थिक दिक्कतों के बावजूद अपने गौ सेवा पथ से विचलित नहीं हुए। इसी आय से उन्हें भरपूर बरकत मिली और बच्चों को खूब पढ़ाया-लिखाया भी।
पिछले दिनों मुन्ना मास्टर तब चर्चाओं में आये जब उनके बेटे डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हुई। धार्मिक कर्मकांड गैर हिंदू द्वारा पढ़ाये जाने के विरोध में कुछ छात्र आंदोलित हुए। उनकी दलील थी कि वह संस्कृत विभाग में भाषा तो पढ़ा सकते हैं, धार्मिक अनुष्ठान नहीं। उसके बाद फिरोज ने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था। फिर उनकी नियुक्ति संस्कृत विभाग के कला संकाय में हुई। इस सारे विवाद से परिवार विचलित नहीं हुआ।
रमजान का सपना था कि बेटा संस्कृत का विद्वान बने। फिरोज ने मेहनत से पिता के सपने को पूरा किया। उसने शिक्षा शास्त्री की शिक्षा अर्जित करके जयपुर के एक संस्कृत स्कूल में पढ़ाया। फिर संस्कृत विश्वविद्यालय में अतिथि अध्यापक के रूप में अध्यापन किया। एक मुस्लिम के रूप में संस्कृत के अनुराग को देखते हुए पिछले वर्ष राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें सम्मानित भी किया था। उन्हें सर्वोत्तम शिक्षक का पुरस्कार भी मिला। उन्हें बीएचयू विवाद का मलाल तो रहा मगर मन में कोई कटुता नहीं रही। शायद विरोध करने वालों को रमजान और परिवार के संस्कृत के लिये योगदान का पता नहीं था। फिरोज खान कहते हैं—पिता को पद्मश्री मिलना, तमाम कड़वाहटों को धो गया। अपने भजनों के जरिये पिताजी ने हमेशा समाज में समरसता का संदेश ही दिया है। वही संस्कार हम चारों भाइयों में विद्यमान हैं।’
रमजान गौ सेवा को राष्ट्र सेवा मानते हैं। वे आज के मुश्किल दौर में गंगा-जमुनी संस्कृति को जी रहे हैं और संदेश दे रहे हैं कि धर्म इनसानियत का हो। हम एक-दूसरे धर्म की आस्थाओं का सम्मान करें। वे गरीबी में भी मुस्कुराते रहे। रसखान परंपरा को जीते रहे। वे मस्जिदों में नमाज भी अता करते रहे और हारमोनियम बजाकर भजन भी गाते रहे। सभी धर्मों के लोगों में उनका सम्मान है और संबंध सौहार्दपूर्ण।
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