देहरादून आरटीओ ऑफिस में दलालों का राज

कहने को तो यहां सबकुछ कायदे और कानून के मुताबिक होता है मगर ये कायदे भी आम इंसान के लिए हैं और कानून भी। ड्राइविंग लाइसेंस बनाना, रजिस्ट्रेशन कराना हो या परमिट, टैक्स प्रक्रिया। इधर से उधर बस धक्के खाते रहो। मदद करना तो बहुत दूर, कोई अधिकारी या कर्मचारी सीधे मुंह बात तक नहीं करेगा। चाहे धक्के खाते हुए आपको एक दिन हो जाए या हफ्ताभर। हां, अगर आपने जेब से चंद नोट की ‘पत्तियां’ निकाल ली तो फिर कोई टेंशन नहीं। महज चंद मिनट में काम पूरा। टेंशन दूर करने के लिए मौजूद हैं दलाल। दलाल ही चपरासी का काम संभाल रहे और यही बाबू का भी काम। संभागीय परिवहन कार्यालय दून का हाल तो ऐसा ही है। लाइसेंस व टैक्स की प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बाद भी दफ्तर में ‘दलाल राज’ हावी है।

प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत भले लाख दावे करें कि, सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगा, पर आरटीओ कार्यालय की तरफ शायद उनका ध्यान ही नहीं जाता। मुख्यमंत्री तो दूर खुद परिवहन मंत्री तक अपने विभाग में झांकने को राजी नहीं। अगर ऐसा होता तो शायद यहां चल रहे ‘खेल’ की कुछ परतें तो उधड़ती। छह साल पहले यहां का सच परिवहन मंत्री के छापे में सामने आ चुका है, पर इसके बाद मंत्री ने भी यहां से आंखे फेर ली। ऐसे में यहां सबकुछ फिर पुराने ढर्रे पर आ गया। सुबह दफ्तर बाद में खुलता है, दलालों का काम दफ्तर के बाहर पहले शुरू हो जाता है।

हाथ में कागजों की फाइल लिए दलाल दफ्तर खुलते ही फाइलें टेबल पर पहुंचानी शुरू कर देते हैं। इनकी ‘हनक’ सिर्फ इसी बात से लगाई जा सकती है, अफसर कोई भी हो, ये बेधड़क उनके कक्ष में घुसकर फाइल टेबल पर रख देते हैं। आम इंसान घंटों बाहर बैठकर अधिकारी से मिलने का इंतजार करता रहता है, लेकिन दलालों को ‘मे-आइ-कम-इन’ तक पूछने की जरूरत नहीं। अपने धंधे के साथ सरकारी कामों में भी दलालों का बोलबाला है। अफसरों के कमरों से सरकारी फाइलें दूसरे कक्षों में ले जाना हो या लिपिकीय कार्य में कर्मियों की मदद। दलाल हर जगह मौजूद दिखेंगे। जहां दलालों का ही बोलबाला हो तो आप खुद समझ लिजिए कि बगैर चढ़ावा चढ़ाए काम कैसे होगा।

पूर्व अधिकारी का रिश्तेदार भी दलाल

एक पूर्व अधिकारी ऐसे हैं, जिन्होंने अपने ही एक नजदीकी रिश्तेदार को यहां दलाल का काम सौंपा हुआ है। इसने आरटीओ के बाहर अपना अलग दफ्तर खोला हुआ है। यह हर काम की सेटिंग करता है। रजिस्टर लिए दूसरे अधिकारियों के साथ चलता है और वाहन का पूरा ब्योरा नोट करता रहता है। इस शख्स को आरटीओ में ‘बकरी’ के नाम से जाना जाता है।

पूरा सिंडिकेट होता है पीछे 

दलालों के पीछे पूरा सिंडिकेट है। इनकी मौजूदगी सिर्फ आरटीओ कार्यालय तक ही नहीं रहती बल्कि पूरे जनपद में इनके एजेंट फैले रहते हैं। एजेंट हर सुबह जगह-जगह से फाइलें लाकर दलाल को देते हैं व शाम तक ‘चढ़ावे’ के ‘खेल’ से फाइलें पास हो जाती हैं।

कुर्सी पर भी बैठ रहे दलाल

आरटीओ दफ्तर में दलाल न केवल हर अनुभाग में घूम रहे, बल्कि अफसरों और कर्मियों की गैर-मौजूदगी में वे अफसरों व कर्मियों की कुर्सी तक पर बैठकर काम कर रहे। वाहन स्वामी को पता ही नहीं चलता कि कुर्सी पर बैठा इंसान वास्तव में अफसर या कर्मचारी है, या फिर कोई और। गुरूवार को भी ऐसा ही हुआ, जब विजिलेंस टीम ने छापा मारा। मुख्य सहायक अपने कक्ष से गैर-मौजूद था और उसकी कुर्सी पर दलाल बैठकर काम कर रहा था।

दो माह में ध्वस्त हो गया था प्रतिबंध

अगस्त-2015 में परिवहन विभाग की समीक्षा के वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने देहरादून के आरटीओ कार्यालय में चल रहे दलाल राज पर गहरी चिंता जताई थी। जिसके बाद 22 अगस्त को कार्यालय में दलालों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया। व्यवस्था सुधारने को स्वयं परिवहन अधिकारी पूरे परिसर का मुआयना करते रहे। रोजाना चेकिंग की गई व दलालों को खदेड़ा गया। इन दो महीने में कार्यालय में व्यवस्थाएं काफी सुधर गई थी, मगर दो बाद ही सब ध्वस्त हो गया।

धोखे में नंबर-वन हैं दलाल

लोगों से मनमाफिक रकम वसूलने में ये दलाल नंबर-वन हैं। हालात ये है कि न तो ये कई दफा लोगों के रुपये लौटाते और न ही काम कराते। रोज ऐसे दर्जनों लोग इनके ठियों पर दिखते हैं।

सरकारी ठप्पा लगवाने की थी तैयारी

दलालों की पहुंच सिर्फ विभाग के अंदर ही नहीं बल्कि शासन तक है। सूत्र बता रहे कि दलाल खुद पर सरकारी ठप्पा लगवाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। प्रदेशभर में करीब एक हजार दलालों को स्टांप वेंडर की तर्ज पर आरटीओ कार्यालयों में ठिया उपलब्ध कराने की फाइल पांच साल पूर्व सरकार में चली थी लेकिन मुख्यमंत्री दरबार ने फाइल को हरी झंडी नहीं दिखाई।

बोले अधिकारी

दिनेश चंद्र पठोई (संभागीय परिवहन अधिकारी) का कहना है कि कंप्यूटराइजेशन की वजह से पहले की अपेक्षा कार्यालय में दलाल प्रवृत्ति पर बड़े पैमाने पर अंकुश लगा है मगर यह अंकुश पूरी तरह तभी संभव होगा जब आम इंसान को कर्मचारी पूरा सहयोग करें। आम इंसान को जागरूक किया जाए और उन्हें यह भी समझाया जाए कि आपको किसी को रुपये देने की जरूरत नहीं। इसके बावजूद जो भी खामियां हैं, उन्हें जल्द दूर किया जाएगा।

62 मिनट के घटनाक्रम में खुली भ्रष्टाचार की पोल

परिवहन कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार ऐसा खुला राज है, जिसे हर कोई जानता है। मगर ले-देकर काम कराने की ‘सोच’ और गलत होता देखने के बाद भी नजरें फेर लेने की संस्कृति ने आरटीओ के कर्मचारियों के हौसले को इस कदर बुलंद कर दिया कि उन्होंने अपने दलाल तक पाल लिए। जो उनकी मौजूदगी में उन्हीं के सामने लोगों से बेखौफ डील करते हैं।

गुरुवार को आरटीओ कार्यालय में हुए 62 मिनट के घटनाक्रम ने आरटीओ दफ्तर में व्याप्त इसी भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी। देखना होगा कि आला अधिकारी क्या इसे गंभीरता से लेते हुए इसमें लिप्त अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्रवाई करते हैं या इस तरह के घटनाक्रम की पुनरावृत्ति होने का इंतजार करते हैं।

विजिलेंस की नजर काफी समय से आरटीओ में व्याप्त भ्रष्टाचार पर टिकी हुई थीं। मगर शिकायतकर्ता के सामने न आने से वह कार्रवाई को कदम आगे नहीं बढ़ा पा रही थी। ऐसे में जब कृषि में पंजीकृत ट्रैक्टर को कामर्शियल में बदलने के लिए दफ्तर में रिश्वत मांगे जाने की लिखित में शिकायत आई तो अधिकारियों ने कार्रवाई करने में जरा भी देरी नहीं लगाई।

 तय योजना के तहत जब शिकायतकर्ता ने मोनू को रकम दी तो उसने रकम को प्रदीप के हवाले करने के साथ फाइल ओके कराने को पकड़ा दी। दोपहर करीब 3.28 बजे प्रदीप को विजिलेंस ने दबोचा और पूछताछ की। गवाहों के सामने उसके बयान रिकार्ड करने के बाद विजिलेंस ने 3.40 बजे मोनू को भी अभिरक्षा में ले लिया। दोनों से गहन पूछताछ की गई, लेकिन इस दौरान मुख्य सहायक यशवीर दफ्तर से बाहर गया हुआ था। तब प्रदीप और मोनू ने उसका नाम ले लिया था। 4.30 बजे यशवीर जैसे ही दफ्तर में दाखिल हुआ, विजिलेंस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया। विजिलेंस ने कार्यालय के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को कब्जे में ले लिया है। इसे विजिलेंस कोर्ट में अहम साक्ष्य के तौर पर पेश करेगी। डीआइजी विजिलेंस ने बताया कि अभी मामले की विवेचना में और भी सबूत सामने आएंगे।

अन्य विभाग भी विजिलेंस की राडार पर

डीआइजी विजिलेंस कृष्ण कुमार वीके ने कहा कि मुख्य सहायक और उसके दोनों दलालों की कुंडली खंगाली जा रही है। इसके साथ अन्य विभाग भी उनके राडार पर हैं। लोगों से अपील है कि यदि सरकारी महकमे में कोई उनसे रिश्वत मांगता है तो वह निडर होकर शिकायत करें। उनकी शिकायत पर कार्रवाई करने के साथ उनके नाम और पते गुप्त रखे जाएंगे।

छह दिन पहले परिवहन आयुक्त का लिपिक हुआ था गिरफ्तार

बीते शनिवार परिवहन आयुक्त के कार्यालय में प्रदूषण जांच केंद्र आवंटित करने के नाम पर परिवहन आयुक्त के कनिष्ठ सहायक विपिन कुमार निवासी मोहल्ला नत्था सिंह महाराणा प्रताप कॉलोनी जसपुर, ऊधमसिंह नगर को पंद्रह हजार रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया था। विपिन देहरादून में लेन नंबर तीन एकता विहार, रायपुर रोड पर किराये के मकान में रहता था और वर्ष 2016 से विभाग में कार्यरत था।

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