‘मिशन सऊदी’ का देहरादून में क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया के दौरान विमोचन -
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‘मिशन सऊदी’ का देहरादून में क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया के दौरान विमोचन

देहरादून । प्रसिद्ध लेखक आलोक लाल और मानस लाल द्वारा लिखित बहुप्रतीक्षित पुस्तक मिशन सऊदी का विमोचन देहरादून स्थित हयात सेंट्रिक में आयोजित क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया के दूसरे दिन किया गया। ‘लॉन्च ऑफ मिशन सऊदी: इंडिया’स फर्स्ट-एवर एक्सट्रडीशन ऑफ़ ए रेप अक्यूज़्ड’ शीर्षक से आयोजित इस सत्र में बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे और अपराध, न्याय, कानून तथा मानवीय संवेदना जैसे विषयों पर गहन विमर्श हुआ। पुस्तक का विमोचन प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता और लेखक केतन मेहता ने किया, जबकि सत्र का संचालन सावधान इंडिया और क्राइम पेट्रोल के निर्माता अनिरबन भट्टाचार्या ने किया। 
सत्र को संबोधित करते हुए उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक और लेखक आलोक लाल ने इस मामले से जुड़ी मानवीय और कानूनी जटिलताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अपराध को केवल कानून के दायरे में नहीं देखा जा सकता, क्योंकि यह गहराई से मानवीय भावनाओं और करुणा से जुड़ा होता है। पुस्तक में वर्णित मामले का उल्लेख करते हुए उन्होंने उस भयावह आघात की बात कही, जिसके चलते पीड़िता ने आत्महत्या कर ली, और बाद में उसके पिता तथा सौतेले पिता ने भी अपनी जान दे दी। आलोक लाल ने प्रत्यर्पण को आपराधिक कानून का सबसे कठिन पहलू बताते हुए कहा कि इसमें हर दस्तावेज़ को दूसरे देश की कानूनी प्रणाली के अनुसार पूरी तरह सटीक होना आवश्यक होता है, जो अक्सर बिल्कुल अलग कानूनों द्वारा शासित होती है।
उन्होंने आगे कहा कि जिस देश में अपराध होता है और जिस देश में आरोपी भाग जाता है, उनके कानूनों में भारी अंतर होने के कारण प्रत्यर्पण अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता है। उन्होंने साझा किया कि पूरी पुस्तक में प्रत्यर्पण कानून पर आधारित अध्याय लिखना उनके लिए सबसे कठिन रहा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि बलात्कारियों के लिए आजीवन कारावास भी अपर्याप्त माना जाता है, तो कानून में संशोधन की जिम्मेदारी समाज और कानून बनाने वालों की है। व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को लिखने से उन्हें आत्मविश्वास मिला, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि वे शुरुआत में इस कहानी को लिखने को लेकर हिचकिचा रहे थे। उन्होंने एससी/एसटी अधिनियम को भी एक जटिल और कई बार उलझाने वाला कानून बताया, जिसे प्रत्येक मामले के संदर्भ में सावधानीपूर्वक समझने की आवश्यकता है।


सह-लेखक मानस लाल ने पुस्तक लेखन के दौरान पड़े भावनात्मक प्रभाव पर खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि आरोपी की पहचान के लिए निर्धारित 48 घंटे पूरे होने के बाद भारतीय दूतावास ने आगे सहायता देने से इंकार कर दिया था और यह स्पष्ट किया था कि पीड़िता का सऊदी अरब में प्रवास नहीं बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि एक किशोर दलित लड़की के साथ हुए बलात्कार और गर्भधारण से जुड़ा यह मामला उनके लिए अत्यंत पीड़ादायक था, खासकर इसलिए क्योंकि उसी समय उनकी पत्नी गर्भवती थीं।
मानस लाल ने उस घटना का उल्लेख किया, जब पीड़िता ने स्वयं गर्भपात का प्रयास किया और अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उसे सच्चाई बताने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने स्वीकार किया कि इस कहानी को लिखते समय मानसिक दबाव इतना अधिक था कि कई बार उन्हें मनोवैज्ञानिक सहायता लेने का विचार आया। इस भावनात्मक बोझ से निपटने के लिए उन्होंने पुस्तक के साथ-साथ कुछ हल्का लेखन भी किया। उन्होंने कहा कि भले ही यह कहानी संरचना में साधारण लगे, लेकिन सबसे साधारण कहानियां भी सबसे गहरे और शक्तिशाली सबक दे सकती हैं।
मिशन सऊदी भारत के इतिहास में सऊदी अरब से एक यौन अपराधी के पहले प्रत्यर्पण की सच्ची और रोमांचक कहानी को प्रस्तुत करती है—एक ऐसा ऐतिहासिक मामला जिसने अंतरराष्ट्रीय कानून, कूटनीति और संस्थागत दृढ़ता की सीमाओं को परखा। आधिकारिक केस फाइलों और न्यायालय के निर्णयों पर आधारित यह पुस्तक नौवीं कक्षा की छात्रा पूजा की त्रासदी को सामने लाती है, जिसकी जिंदगी यौन हिंसा ने पूरी तरह तोड़ दी, और केरल पुलिस की आईपीएस अधिकारी मेरिन जोसेफ द्वारा न्याय के लिए किए गए अथक संघर्ष को भी रेखांकित करती है।
यह पुस्तक पाठकों को भारत की न्याय प्रणाली, अंतरराष्ट्रीय प्रत्यर्पण की जटिल प्रक्रियाओं और व्यवस्था की उदासीनता की मानवीय कीमतों की दुर्लभ झलक प्रदान करती है। यह उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि है जो चुपचाप लेकिन अडिग होकर न्याय के लिए संघर्ष करते हैं। भारत की सबसे प्रतिष्ठित क्राइम-लेखन जोड़ी द्वारा लिखित मिशन सऊदी केवल एक पुलिस कथा नहीं है, बल्कि यह करुणा, दृढ़ संकल्प और न्याय की निरंतर खोज का सशक्त दस्तावेज़ है।

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