किसी के द्वारा पर एक साधु आया और द्वारपाल से बोला कि भीतर जाकर राजा से कहो कि उनका भाई आया है।
द्वारपाल ने समझा कि शायद ये कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो जो संन्यास लेकर साधुओं की तरह रह रहा हो।
सूचना मिलने पर राजा मुस्कुराया और साधु को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया।
साधु ने पूछा , “ कहो अनुज! क्या हाल-चाल हैं तुम्हारे?”
राजा बोला, “मैं ठीक हूँ आप कैसे हैं भैया ?”
साधु ने कहा,”जिस महल में मैं रहता था, वह पुराना और जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे 32 नौकर थे वे भी एक-एक करके चले गये। पाँचों रानियाँ भी वृद्ध हो गयीं और अब उनसे कोई काम नहीं होता।
यह सुनकर राजा ने साधु को 10 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।
साधु ने 10 सोने के सिक्के कम बताये।
तब राजा ने कहा, “इस बार राज्य में सूखा पड़ा है, आप इतने से ही संतोष कर लें।”
साधु बोला, ”मेरे साथ सात समुन्दर पार चलो ,वहां सोने की खदाने हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जायेगा। मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।”
अब राजा ने साधु को 100 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।
साधु के जाने के बाद मंत्रियों ने आश्चर्य से पूछा, “क्षमा करियेगा राजन ! लेकिन जहाँ तक हम जानते हैं आपका कोई बड़ा भाई नहीं है, फिर आपने इस ठग को इतना इनाम क्यों दिया?”
राजन ने समझाया, “ देखो ! भाग्य के दो पहलू होते हैं। राजा और रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा।
जर्जर महल से उसका आशय उसके बूढ़े शरीर से था। 32 नौकर उसके दांत थे और 5 वृद्ध रानियाँ, उसकी 5 इन्द्रियां हैं।
समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा राजकोष सूख गया,क्योंकि मैं उसे मात्र दस सिक्के दे रहा था जबकि मेरी हैसियत उसे सोने से तौल देने की है। इसीलिए उसकी बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर मैंने उसे सौ सिक्के दिये और कल से मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा।
निष्कर्ष-
किसी व्यक्ति के बाहरी रंग रूप से उसकी बुद्धिमत्ता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता ।इसलिए यदि किसी ने खराब कपड़े पहने हैं या वो देखने में अच्छा नहीं है; तो उसके बारे में हमें हीन विचार नहीं बनाने चाहिए।