देहरादून। हृदय रोग दुनिया भर में रुग्णता और मृत्यु दर का प्रमुख कारण है, खासकर बुजुर्ग आबादी मेंय कोरोनरी धमनी रोग (सीएडी) के साथ, सबसे आम अभिव्यक्ति है। सीएडी खराब जीवनशैली, पहले से मौजूद जीवनशैली रोगों के कारण समय के साथ कोरोनरी धमनियों में एथेरोस्क्लोरोटिक घावों के विकास के कारण होता है। इसका इलाज बैलून एंजियोप्लास्टी और स्टेंट इम्प्लांटेशन सहित पुनरोद्धार प्रक्रियाओं की मदद से किया जा सकता है। पर्क्यूटेनियस ओल्ड बैलून एंजियोप्लास्टी (पीओबीए) की आदिम तकनीक को स्टेंट इम्प्लांटेशन तकनीकों की शुरुआत के द्वारा सुधारा गया था, जिसके बाद ड्रग-लेपित स्टेंट और नए एंटीप्लेटलेट एजेंटों के रूप में और प्रगति हुई।
कोरोनरी एंजियोग्राफी, सीएडी को मापने का सबसे अच्छा तरीका है और साथ ही यह एक्यूट दिल के दौरे वाले रोगियों में अनुशंसित प्रक्रिया है। इसे परक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन (पीसीआई) भी कहा जाता है, एंजियोप्लास्टी का उपयोग बंद हृदय धमनियों को खोलने के लिए किया जाता है और फिर से संकुचन की संभावना को खत्म करने के लिए स्टेंट नामक एक छोटी तार जाल ट्यूब को प्रत्यारोपित किया जाता है। नेशनल इंटरवेंशनल काउंसिल (एनआईसी) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में कोरोनरी आर्टरी डिजीज के लिए परक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन का प्रचलन और संख्या बढ़ रही है। हाल के सर्वेक्षणों से पता चला है कि भारत में, औसतन 40 से 50 मिलियन लोग इस्केमिक हृदय रोग (आईएचडी) से पीड़ित हैं जो कि कुल मृत्यु दर का लगभग 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत है। इसके अलावा, लगभग 4.5 लाख रोगी सालाना एंजियोप्लास्टी से गुजरते हैं।