धन कम, तन मध्यम और मन विशाल रखोः मोरारी बापू :
हरिद्वार। राम कथा के दूसरे दिन कथा प्रारंभ पर मोरारी बापू ने कहा कि आचार्य किसको कहते हैं? हम आचार्य महामंडलेश्वर की छाया में हैं और दूसरा है निरंतर हरि कथा कौन कहता है? वैसे अनादि प्रवक्ता सदाशिव है। मगर वह निरंतर कथा गान नहीं करते।कथा सुनते हैं,कभी कथा,कभी ध्यान में हजारों साल बैठ जाते हैं,कभी नाम सुमिरन में बैठ जाते हैं।।यह त्रिवेणी की धारा जब तक बहती रहती है तब तक कथा किसी न किसी रूप में निरंतर बहती है।।लेकिन निरंतर कथा गान काग भूषणडीजी करते हैं।।वहां कइ विहंगवर कथा सुनने आते है।।कथा तो अनंत है,नित्य है,गाने वाला नित्य नहीं है।। वैसे चिरंजीवीयों में कागभूसूंडीदजी का नाम नहीं है।। फिर भी नाश कलपांत में भी नहीं हुआ।।कागभूसूंडी टजी कहते हैं मैं शरीर छोड़ना नहीं चाहता।। शरीर के बिना हरि भजन नहीं होता।मेरा लक्ष्य हरि नहीं, हरि भजन है।।चाहुं तो एक क्षण में मृत्यु प्राप्त कर सकता हूं।।भगवत कथा एक भजन है,कथाकार भजन करते हैं।।तन का स्वास्थ्य,मन का स्वास्थ्य और धन का भी स्वास्थ्य होना चाहिए।। धन कम रखो,यानी कि धन बुद्धि-धन की आसक्ति कम हो।।धन नहीं धन्य धन्य रखो।।तन मध्यम रखो और मन बहुत बड़ा रखो।।कागभुसुंडि स्वस्थ है भूशुंडिजी के पिता का नाम चंड नामका काक पक्षी और माता हंसिनी जो शीव की एक शक्ति है।। शरीर बाप की परंपरा और विवेक परंपरा मां से प्राप्त हुए।
एक बार चिरंजीव की चर्चा में काग भूशुंडिजी का निवास सुमेरु पर्वत,नीलगिरी पर्वत की छांव में एक डाली पर जैसे व्यास गादी हो और कथा शुरू हुई कि वहां गरुड और वशिष्ठ भी पहुंचे।।और प्रश्न पूछते हैं आप अनंत काल से गा रहे हैं आप अनंत कालीन है? इसका राझ क्या है? एक ही जवाब मिला मैं अनामय-निरामय हुं।। मैं निरंतर स्वस्थ हूं।।फिर क्यों स्वस्थ रहें वह भी बहुत श्लोको में बताया गया।।हे वशिष्ठ! कोई भी मेरी अनामयता-निरामय टताका राझ एकमात्र मेरा आरोग्य है।।शरीर का,मन का, कोई वस्तु टूट जाए,वह जाए,जीर्ण-शिर्ण हो जाए,कुछ भी हो जाए जीर्ण-शिर्ण वस्तु में नवसृजन देखता हूं।। जीवन में कुछ भी घटना घटे तो समझना इसमें कुछ नवसृजन है।। बुद्ध पुरुष के जीवन में कुछ भी घटना घटी वह विचलित नहीं होता वह जानता है कि मंगल भवन के गर्भ से अमंगल निकल ही नहीं सकता।।कितनी ही मुश्किल आये मैं धीर रहता हूं।मेरी निरोगिता का यही राज है।। बापू ने बताया कि विकास के लिए बहुत जानना जरूरी है लेकिन विश्राम के लिए थोड़ा अज्ञान होना भी जरूरी है।