भारत में बहुत धन दौलत और हीरे जवाहरात थे | इन्हीं हीरे जवाहरात में एक था कोहिनूर का हीरा |कोहिनूर हीरा आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले की गोलकुंडा की हीरे की खदानो से निकला था | हालाँकि इस बात के कोई पुख़्ता प्रमाण नहीं हैं क्यूंकी कुछ लोगों का ये भी कहना है की ये हीरा नदी से मिला था |क्यूंकी गोलकुंडा की खदानो से बहुत से दूसरे बेशक़ीमती हीरे भी निकले हैं इसलिए कोहिनूर हीरे को भी उन्हीं खदानो से निकला हुआ मान लिया गया |1300 ईसवी के आस पास जिस समय इस हीरे के सबसे पहले मिलने के प्रमाण मिलते हैं उस समय ये हीरा काकित्य वंश के पास था | इसके बाद 14 वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के दूसरे वंश खिलजी के अल्लाउदीन खिलजी ने दक्षिण में लूट मचाई और इस हीरे को लूट लिया | इसके बाद कोहिनूर हीरा दिल्ली सल्तनत के दूसरे वंशों के पास होता हुआ अंत में लोधी वंश के इब्राहिम लोधी के पास पहुँचा | लोदी वंश के आख़िरी सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने हरा कर दिल्ली सल्तनत को खत्म कर मुगल वंश की स्थापना की थी | तब तक इस हीरे को कोहिनूर हीरे के नाम से नहीं जाना जाता था | कहा जाता है कि शुरू में इसका वजन 793 कैरट था |बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में एक बड़े हीरे के बारे में जिक्र किया है | बाबर के बाद ये हीरा उसके बेटे हुमायूँ से होता हुआ अंत में शाह जहाँ तक पहुँचता है | शाह जहाँ जिन्हें हम ताज महल के निर्माण के लिए जानते हैं उसने अपने लिए दुनिया का सबसे कीमती तख्त भी बनवाया था जिसे मयूर सिंहासन के नाम से जाना जाता है |इस कीमती हीरे कोहिनूर को शाह जहाँ ने अपने तख्त में जड़वाया था | लेकिन शाह जहाँ को उसके बेटे औरंगज़ेब ने ही बंदी बना लिया था |इतिहास के अनुसार औरंगज़ेब ने इस हीरे को किसी हीरे को तराशने वाले को दिया और उसी बेवकूफ़ इंसान ने इसे तराशने के नाम पर इसका वजन 793 केरट्स से 186 केरट्स कर दिया |इसके बाद औरंगज़ेब ने ना तो उसे इसकी मज़दूरी दी बल्कि उस पर फाइन भी लगा दिया | इसके बाद ये हीरा औरंगज़ेब के पोते मुहम्मद शाह के पास पहुंचा | 1739 में फारस के शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण करके मुहम्मद शाह के खजाने को लूट लिया | नादिर शाह ने मयूर सिंहासन, दरिया-ई-नूर और कोहिनूर हीरे को भी लूट लिया था |नादिर शाह ने जब पहली बार इस हीरे को देखा तो वो बहुत हैरान हुआ उसने इस हीरे की चमक की वजह से इसे कोहिनूर नाम दिया जिसका अर्थ होता है रोशनी का पहाड़ |तब से इस हीरे को कोहिनूर हीरे के नाम से जाना जाता है | नादिर शाह इस हीरे को फ़ारस ले गया | नादिर शाह की हत्या के बाद ये हीरा उसके जनरल अहमद शाह अब्दाली के हाथों मे आ गया |लेकिन इस हीरे को शायद फिर से भारत आना ही था | अहमद शाह अब्दाली के वंश का शासक शाह शुजा दुर्रानी 1813 में इस हीरे को वापिस भारत लेकर आया |उसने खुद ये हीरा पंजाब के शेर महाराजा रणजीत सिंह को दे दिया | असल में शाह शुजा दुर्रानी अफ़ग़ानिस्तान का तख्त जीतने में महाराजा रणजीत सिंह की मदद चाहता था | इस तरह ये हीरा भारत में महाराजा रणजीत सिंह के पास आ चुका था | महाराजा रणजीत सिंह इस हीरे को बाजूबंद में पहना करते थे | ये हीरा महाराजा रणजीत सिंह के पास उनकी मृत्यु तक रहा | महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी वसीयत में इस हीरे को जगन्नाथ मंदिर में दान देने की इच्छा जताई थी |रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिख साम्राज्य पतन की ओर बढ़ चला था | रणजीत सिंह का बेटा दुलीप सिंह अंग्रेज़ो के साथ दूसरी एंग्लो सिख वॉर हार गया था | हार के बाद लाहोर की संधि के तहत इस हीरे को दुलीप सिंह को इंग्लेंड की रानी को भेंट देने के लिए कहा गया जिसके बाद ये हीरा इंग्लेंड पहुँच गया | इंग्लैंड की रानी इस हीरे की बनावट से खुश नहीं थी इसलिए उन्होने इसे फिर से तराशने का काम करवाया | जिसके बाद इस हीरे का वजन 108.93 केरट्स रह गया |