ऋषिकेश। “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेज सरकार के कफन में कील साबित होगी।’’ यह कथन स्वराज्य के महान उपासक लाला लाजपत राय जी ने अपने आखिरी भाषण में कहा था। इस कथन ने ‘भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन’ को एक संबल प्रदान किया था। महान क्रान्तिकारी लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा में हुआ था।
लाला लाजपत राय जी ने 19वीं सदी के अंत में अकाल और विपदा से जो भारतीय प्रभावित हुये थे उनके कल्याण के लिए कई कार्य किये। उन्होंने अपना पूरा जीवन नारी शक्ति, विधवाओं एवं अनाथ बच्चों के कल्याण और सेवा में लगाया तथा अछूतों के उद्धार के लिये अछूतोद्धार आन्दोलन चलाया। साथ ही भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, असहयोग आंदोलन में पंजाब का नेतृत्व किया तभी से उन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ की उपाधि से संबोधित किया जाने लगा। वे भारतीय समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद को समाप्त करना थे और उसके लिये जीवन पर्यंत कार्य करते रहे।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री लाला लाजपत राय जी की जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये कहा कि मैं तो लाला जी को हिन्दी भाषा का उपासक मानता हूँ उन्होंने हिन्दी में शिवाजी, भगवान श्रीकृष्ण और कई अन्य महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु बहुत बड़ा योगदान दिया। भारत में हिन्दी भाषा लागू करने के लिये उन्हांेने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था। आईये हिन्दी से जुड़करय हिन्दी को दिल से अपनाकर हम इस महान क्रान्तिकारी को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करे।