योगमय जीवन पद्धति अपनाकर महर्षियों को अर्पित करें अपनी भावाजंलिः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

क्षणिक खुशियों के लिये जीवन को जोखिम में न डालेंः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

क्षणिक खुशियों के लिये जीवन को जोखिम में न डालेंः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने बीसवीं सदी के आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत परमहंस योगानन्द जी की जयंती के पावन अवसर पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये कहा कि परमहंस योगानन्द जी ने भारत की प्राचीन विधा योग को सर्वव्यापी करने में अनुपम योगदान दिया। बीसवीं सदी में उन्होंने पश्चिम की धरती पर योग की गंगा बहायी और दुनिया को क्रिया योग के माध्यम से ईश्वर से साक्षात्कार का ज्ञान दिया। उनका प्रसिद्ध ग्रंथ ‘योगी कथामृत’ योग जिज्ञासुओं के लिये एक अद्भुत प्रेरणा का स्रोत है।

परमहंस योगानंद ने 1920 में बोस्टन जाकर क्रिया योग सिखाया था। योग के विविध आयामों के माध्यम से शारीरिक व मानसिक स्तर पर स्वस्थ रहना, शरीर, मन, संवेदना, संवेग के स्तर पर योग किस तरह मदद करता हैं तथा क्रिया योग के माध्यम से अपनी ऊर्जा का उपयोग करना आदि अनेक सिद्धांत उन्होंने दिये।

उनका मानना था कि क्रिया योग के माध्यम से अपने जीवन को संवार कर ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र के माध्यम से ‘‘यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धरना, ध्यान और समाधि’’ बड़े ही अद्भुत सूत्र दिये। वर्तमान समय में भारत सहित लगभग पूरा विश्व योग के माध्यम से स्वस्थ तन और मन की कल्पना साकार कर रहा है, इसका श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है तथा वर्तमान समय में योग को विश्व व्यापी करने हेतु तथा योग को पूरे विश्व के सामने रखने का कार्य भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया।

स्वामी जी ने कहा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है ‘‘योगः कर्मसु कौशलम्’’ अर्थात् योग से कर्मों में कुशलता आती है तथा इसे व्यावाहरिक स्तर पर समझें तो योग शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है।

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