मथुरा। ओलावृष्टि, बरसात और आंधी तूफान से किसानों को फसलों में बडा नुकसान हुआ है। सरसों, आलू और गैहंू की फसल को बडे पैमाने पर नुकसान हुआ है। किसान यूनियन, राजनीतिक दल और तमाम संगठन अपने स्तर से किसानों को उचित मुआवजा दिलाने के लिए आंदोलित हैं। यहां तक कि एक किसान संगठन के पदाधिकारियों के खिलाफ डीएम ने खफा होकर रिपोर्ट तक दर्ज करा दी। अधिकारी लगातार किसानों और किसान सगठनों को आश्वासन दे रहे हैं कि किसानों को उचित मुआवजा मिलेगा। 45 करोडी की डिमांड शासन को भेजी जा चुकी है। जिला प्रशासन से जो सूचनाएं छन कर आ रही हैं उनके मुताबिकि आलू और सरसों में हुए नुकसान का मुआवजा मिलने जा रहा है। गैहूं उत्पादक किसानों को इससे वंचित रहना पड सकता है।
दूसरी और भारतीय किसान यूनियन ने नया राग छेड दिया है। भारतीय किसान यूनियन (टिकैत गुट) ने मुद्दा उठाया है कि प्रशासन जिस मुआवजे की बात कर रहा है वह सरकार की ओर से की जाने वाली मदद है कि बीमा कंपनी से मिलने वाला लाभ है। इस पर प्रशासन रूख स्पष्ट नहीं कर रहा है। भारतीय किसान यूनियन के मंडल अध्यक्ष गजेन्द्र परिहार का कहना है कि जनपद में बडी संख्या में किसानों ने अपनी फसलों का बीमा कराया है। केसीसी लोन लेते समय फसल का बीमा अनिवार्य है। हलांकि कई बार कहा यह भी जाता है कि किसान के लिए बीमा कवर लेना स्वेच्छिक है लेकिन यह हकीकत नहीं है। केसीसी लोन की धनराशि ही किसान को बीमा की रकम काट कर मिलती है। बैंकों ने यह अनिवार्य शर्त बना रखी है कि केसीसी लोन के लिए बीमा करना ही पडेगा। जब किसान की फसल खराब होती है तो सरकार इस किसानों की मदद के लिए मुआवजा घोषित करती है जबकि बीमा कंपनी इसी घोषणा की आड में छुप कर निकल जाती है। बीमा कंपनी की ओर से मुआवजा राशि मिलने की शर्तें भी बेहद जटिल हैं। 24 घंटे के अंदर किसान को अपनी फसल के नुकसान की सूचना कंपनी को देनी होगी। इसी तरह की कई दूसरी जटिल शर्त हैं जिन्हें पूरा करना किसान के लिए बेहद मुश्किल है।
भाकियू जिलाध्यक्ष राजकुमार तौमर ने बताया कि किसान बीमा कंपनी को किसान किस तरह से समय पर सूचना दे सकता है। कंपनी की ओर से किसानों के साथ खुला धोखा किया जा रहा है। बीमा कंपनी के टोल फ्री नम्बर बंद जा रहे हैं। इन पर किसी तरह की कोई सूचना दी नहीं जा सकती। बीमा कंपनी के कर्मचारी किसान को कहां मिलेंगे इस की जानकारी किसी किसान को नहीं है। किसानों को बीमा कंपनी के कर्मचारियों से मिलने का मौका ही नहीं मिलता है, बीमा बैंक कर्मचारी करते हैं और मुआवजे की बात कंपनी के उपर डाल देते हैं।
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