देहरादून अप्रैल की रात ढाई बजे लक्ष्मण चौक पुलिस चौकी को सूचना मिली की एक तेज़ गति गाड़ी एक बाइक सवार को कुचल भाग गई है। चीता पुलिस के आरक्षी श्री राकेश कुमार और आरक्षी श्री गोपाल दास तत्काल मौके पर पहुंचे और बिना एम्बुलेंस का इंतज़ार किये खून में लथपथ बाइक सवार को तत्काल दून हॉस्पिटल ले गए, पुलिस को गाली देने वाले समाज का शायद की कोई व्यक्ति इस गरीब की मदद करता।गंभीर अवस्था में अचेत युवक को हायर सेंटर रेफर कर दिया गया जिसपर पुलिस ने घायल को शहर के इंद्रेश हॉस्पिटल में भर्ती करवाया जहां उसने मौत के सामने हथियार डाल दिए और दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो गयी। गरीब युवक को इन्साफ दिलाने का बीड़ा कांवली रोड चौकी प्रभारी श्री दीपक रावत जी ने उठाया और पुलिस का अर्थ समाज को समझाया। मृतक का परिवार आज इन खाकीधारी शेरों का मुरीद हो गया है। इन्साफ किसी भी कीमत पर दिलवाया गया।
यह एक ब्लाइंड केस था जिसमे दोषी तक पहुंच पाना असंभव था क्योंकि किसी भी CCTV में यह शातिर कैद नही हो पाया था। केवल वारदात के स्थान पर पुलिस को कार की टूटी नंबर प्लेट के दो अंक 3 और 9 हाथ लगे थे। फिर शुरू हुई ऐसी विवेचना जो हम सबको पुलिस पर गर्व करने को विवश कर देगी।
देहरादून की सड़को पर हज़ारो ऐसी गाड़िया है जिनकी नम्बर प्लेट में 3 और 9 अंक आते होंगे जिस कारण इस कार को पकड़ पाना असंभव था। पुलिस को किसी प्रकार पता चला कि कार फॉक्सवैगन की पोलो थी। विवेचना को गति और आधार मिल गया। चौकी प्रभारी दीपक रावत जी और उप निरीक्षक महावीर सिंह सजवाण जी ने शहर की सभी पोलो गाड़िया टोह डाली पर ऐसी कोई गाडी नही थी जिस गाडी में 3 और 9 अंक एक साथ हो। न्याय दिलाने को कर्तव्यबद्ध इन निष्ठावान पुलिसकर्मियों ने हार नही मानी और निगरानी शुरू कर दी। कुछ ही दिनों बाद पुलिस की विवेचना को सार्थक परिणाम तब मिले जब फॉक्सवैगन एजेंसी के सर्विस रजिस्टर में एक मेरठ की गाड़ी मिली जिसके पंजीकरण में संख्या मेल खा गई। पुलिस की टीम तत्काल मेरठ पहुंची देहरादून अप्रैल की रात ढाई बजे लक्ष्मण चौक पुलिस चौकी को सूचना मिली की एक तेज़ गति गाड़ी एक बाइक सवार को कुचल भाग गई है। और एक अमीर बाप के बिगड़े साहिबजादे को कार समेत दबोच लिया। परिवार ने अपनी हनक और धन का पूरा प्रभाव पुलिस को दिखाया पर इन निष्ठावान पुलिसकर्मियों ने मृतक सुराजमन तिवारी को इंसाफ दिलाने की ठानी थी। यदि पुलिस चाहती तो लाखों रूपये की रिश्वत खा इस अमीर बिगड़े शहजादे आयुष सिंघल को वही छोड़ देती और फाइल बन्द हो जाती। कोई प्रश्न ही नही उठता पर कर्तव्यपरायण पुलिस के दोनों अधिकारियो ने असली ‘सिंघम’ का परिचय समाज को दिया और बताया कि ख़ाकी में कितना दम होता है।
दुर्भाग्य से पुलिस की ऐसी उपलब्धियों को केवल समाचार पत्रों में ही जगह मिल सकी जबकि किसी न्यूज़ वाले बाबू ने इस खबर को चलाना तक उचित नही समझा।
सोचे जब संसाधन विहीन पुलिस ऐसे कारनामे कर सकती है तो यदि सरकार पुलिस को आधुनिक सुविधाओं से लैस कर दे तो क्या मजाल कोई अपराधी पुलिस से बच सके। दुर्भाग्य से समाज केवल पुलिस को गाली देता है पर दीपक रावत जी और महावीर सिंह सजवाण जी जैसे देशभक्त पुलिसकर्मी समाज को पुलिस की असली छवि से रूबरू करवा ही देते है।